मैनहन गाँव - फ़ुलवारियों की एक कथा-
अतीत से वर्तमान तक.....
जनसत्ता अखबार में "फ़ूलों का आँगन" शीर्षक के साथ 9 अगस्त 2011 को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित मेरा लेख जो फ़ूलों के सांस्कृतिक महत्व के अतरिक्त आम-जनमानस में फ़ुलवारियों के प्रति विरक्तता पर आधारित है, आखिर वे क्यों दूर रहे पुष्पों से और आज भी क्यों महरूम है फ़ूलों और उनकी मदमाती सुगन्ध से... ये लेख जंगल कथा ब्लॉग से लिया गया है।...कृष्ण कुमार मिश्र
phulon ka aangan ....nice
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