Friday, October 8, 2010
बाँस के फ़ूल !
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Friday, September 17, 2010
Wednesday, September 15, 2010
Tuesday, September 14, 2010
Sunday, August 1, 2010
इन्हे जंगल में ही रहने दो!
जब हम इतने स्वार्थी और क्रूर हो गये है तो फ़िर क्यो इन हाथियों को जंगलों से पकड़ कर पालतू बनाते है, ताकि ये हमारा बोझ ढो सके! क्यों अलग करते इनके परिवारों से और ट्र्निंग के दौरान असहनीय पीड़ा से गुजारते इस प्राणी को, लाखों भाले चुभने का दर्द, लाखों चीत्कारों के बाद जब यह आदी हो जाता है हमारा हुक्म मानने के लिए....वर्षों वफ़ादारी से हमारा बोझ उठाता है, पर जब यह बूढ़ा, लाचार और बीमार होता है, तब हम अपनी जिम्मेदारी से भाग लेते है...इसे विवश और बीमार छोड़कर....कुछ ऐसा ही हुआ लखनऊ चिड़ियाघर से दुधवा लाये गये सुमित के साथ!
कृष्ण कुमार मिश्र
कृष्ण कुमार मिश्र
Thursday, June 10, 2010
डिग्निटी डायलॉग में सरेली गाँव में पक्षी सरंक्षण की एक कहानी!
डिग्निटी डायलॉग में सरेली गाँव में पक्षी सरंक्षण की एक कहानी!
Dignity Dialogue Magazine Issue May 2010.
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-262727
Dignity Dialogue Magazine Issue May 2010.
कृष्ण कुमार मिश्र
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Sunday, April 25, 2010
Friday, April 16, 2010
Friday, April 9, 2010
Tuesday, April 6, 2010
Sunday, April 4, 2010
Thursday, April 1, 2010
हिन्दुस्तान लखनऊ में प्रकाशित दुधवा लाइव द्वारा गौरैया बचाओ अभियान
22 मार्च 2010 को हिन्दुस्तान लखनऊ में प्रकाशित दुधवा लाइव द्वारा गौरैया बचाओ अभियान में किए गये कार्यक्रम।
Monday, March 29, 2010
Wednesday, March 3, 2010
गौरैया के बिना सूना घर आँगन- रवीश कुमार
3 फ़रवरी 2010 को हिन्दुस्तान दैनिक में, रवीश कुमार जी का दुधवालाइव डाट कॉम पर आधारित विश्लेषणात्मक लेख ।
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Saturday, February 27, 2010
मुश्किल में बाघ- जनसत्ता संपादकीय
फ़रवरी २७, २०१० को जनसत्ता दैनिक के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित दुधवा लाइव का यह लेख, बाघों और उनके आवासों के विषय पर आधारित है।---कृष्ण कुमार मिश्र
Saturday, February 20, 2010
डेली न्यूज़ एक्टीविस्ट में प्रकाशित " दुधवा लाइव"
20, फ़रवरी 2010 को डेली न्यूज़ एक्टीविस्ट में दुधवा लाइव का एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसे यहाँ पर पोस्ट कर रहा हूँ।
Thursday, February 18, 2010
दुधवा लाइव: वन्य-जीवन पर भारत की पहली हिन्दी पत्रिका
http://dudhwalive.com
दुधवा लाइव पत्रिका का सृजन उन कारणों की परिणित है, जिन्हे सरकारें व समाज़ के जिम्मेदार लोग नज़र्-ए-अन्दाज करते है। हम अपनी राष्ट्रीय प्राकृतिक संपदा के संरक्षण व संवर्धन की इस मुहिम में आप सभी को आमंत्रित करते है, जो अपने चारों तरफ़ की उन सभी गतिविधियों को देखते है, और विचार भी करते है। किन्तु बेबाकी से उस बात की अभिव्यक्ति नही कर पाते या फ़िर मीडिया के बदलते परिवेश में ऐसी महत्वपूर्ण खबरों व लेखों को जगह नही मिल पाती है। हम आप से वादा करते है कि हम आप की बात को उसके नियत स्थल तक पहुंचाने की भरसक कोशिश करेंगे। हमारी धरती की छिन्न-भिन्न होती दशा-व्यथा, वनों और उनके इतिहास, जैव-विविधिता, प्राकृतिक संपदा और उससे जुड़ा हमारा ज्ञान , जीवों पर हो रहे अत्याचार आदि महत्वपूर्ण मुद्दों की तस्वीर दुधवा लाइव के जरिए लोगों तक पहुंचायेंगे। ये एक ऐसा मंच होगा जो संरक्षित वनों व वन्य जीवों के अलावा हमारे गाँव-जेवार के पशु-पक्षियों और खेत-खलिहानों की बाते करेगा। ग्रामीण अंचल के लोगों के प्राकृतिक ज्ञान की बौद्धिक संपदा के संरक्षण को हम प्राथमिकता देंगे। इन प्रयासों में हमें आप सभी का निरन्तर सहयोग चाहिए, तभी जाकर हम अपने सही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।बापू के शब्दों के साथ "किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है।"
धन्यवाद
संपादक/माडरेटर
दुधवा लाइव dudhwalive@live.com
कृष्ण कुमार मिश्र
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Sunday, January 24, 2010
बसन्त पंचमी के दिन को हम राष्ट्रीय अवधी दिवस की तरह क्यों न मनायें।
इसी दिन अवधी सम्राट पं० बशीधर शुक्ल का जन्म हुआ था। आजादी के इस नायक ने ही सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज को लांग मार्च गीत दिया...कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा। इन्ही के उस गीत की आवाज ने करोड़ों हिन्दुस्तानियों को सदियों की नीद से जगाने का काम किया....उठो सोने वालों सबेरा हुआ है............एक और गीत जिसे साबरमती आश्रम की भोर प्रार्थना बनाया गया...उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है।
अवधी भाषा में उनकी कवितायें समाज के सभी वर्गों का और प्रकृति के सभी पहुलुओं को छूती ही नही है वरन उनकी पीड़ा और खूबसूरती का सजीव चित्रण किया है। यहां मैं अपना एक लेख जो अमृत वर्षा दैनिक नई दिल्ली से 23 जनवरी सन 2010 ईस्वी को प्रकाशित हुआ, जिसकी कतरन यहां चिपका रहा हूं। ताकि तराई के जनपद के इस भाषा मर्मग्य व स्वतंत्रता सेनानी से आप सब परिचित हो सके।
अवधी भाषा में उनकी कवितायें समाज के सभी वर्गों का और प्रकृति के सभी पहुलुओं को छूती ही नही है वरन उनकी पीड़ा और खूबसूरती का सजीव चित्रण किया है। यहां मैं अपना एक लेख जो अमृत वर्षा दैनिक नई दिल्ली से 23 जनवरी सन 2010 ईस्वी को प्रकाशित हुआ, जिसकी कतरन यहां चिपका रहा हूं। ताकि तराई के जनपद के इस भाषा मर्मग्य व स्वतंत्रता सेनानी से आप सब परिचित हो सके।
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Friday, January 15, 2010
दो फ़न वाला दुर्लभ रसेल वाइपर
१३ अगस्त सन २००६ को दैनिक हिन्दुस्तान लखनऊ से प्रकाशित मेरा लेख, जो एक बेहतरीन और अदभुत जानकारी देता है, भारत के शेषनागों के बारे में, संभवता यह पहला रिकार्ड है भारत के जीव-जगत में, दो सिर वाला वाइपर सर्प। खीरी के एक गांव में ये जीव दिखाई पड़ा और ग्रामीणों ने तुरन्त इसे महादेव के मन्दिर में रखकर पूजा-अर्चना प्रारम्भ कर दी, आखिर महादेव के प्रिय सर्पों में यह तो शे्षनाग का अवतार था!
खैर अब आप सोचियें कि एक शरीर में दो मस्तिष्क और दो मुँह वाला जीव, भोजन मिलने पर क्या करेगें।
दोनों मुंह आपस में लड़ेगें?
या समन्वय स्थापित करेगें?
विस्तृत जानकारी के लिए लेख पढ़िए।
खैर अब आप सोचियें कि एक शरीर में दो मस्तिष्क और दो मुँह वाला जीव, भोजन मिलने पर क्या करेगें।
दोनों मुंह आपस में लड़ेगें?
या समन्वय स्थापित करेगें?
विस्तृत जानकारी के लिए लेख पढ़िए।
Sunday, January 10, 2010
...........जब सुहेली भी ठहरी नज़र आई
हिन्दुस्तान में ६ जनवरी २०१० को प्रकाशित श्रद्धाजंली।
पद्म भूषण कुँवर बिली अर्जन सिंह(१५ अगस्त १९१७-०१ जनवरी २०१०)
पद्म भूषण कुँवर बिली अर्जन सिंह(१५ अगस्त १९१७-०१ जनवरी २०१०)
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत
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एक आनरेरी टाइगर का जाना
कुँवर बिली अर्जन सिंह जिन्होंने भारत में टाइगर संरक्षण की शुरुवात की और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना करवाई। और दुनिया में पहली बार बाघ और तेन्दुओं को पुनर्वासित करने का सफ़ल प्रयोग किया। ऐसी महान विभूति की हमारे मध्य से अनुपस्थित, महान दुख और रिक्तता का एहसास करायेंगा, जब-जब इन खूबसूरत जीवों पर अत्याचार होगा।
इस वैश्विक व्यक्तित्व को मेरी भाव-भीनी श्रद्धाजंली।
अमर उजाला में प्रकाशित ये श्रद्धाजंली की एक कतरन पोस्ट कर रहा हूं, इस आशा के साथ कि आप सब भी वाकिफ़ होगे धरती के उस महानायक से जो अब हमें अलविदा कह चुका है।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
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इस वैश्विक व्यक्तित्व को मेरी भाव-भीनी श्रद्धाजंली।
अमर उजाला में प्रकाशित ये श्रद्धाजंली की एक कतरन पोस्ट कर रहा हूं, इस आशा के साथ कि आप सब भी वाकिफ़ होगे धरती के उस महानायक से जो अब हमें अलविदा कह चुका है।
कृष्ण कुमार मिश्र
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Friday, January 8, 2010
मीरा-बलराम सिंह पुरस्कार
मेरा यह लेख १५ अक्टूबर सन २००६ में दैनिक हिन्दुस्तान लखनऊ में प्रकाशित हुआ।
पद्म श्री बिली अर्जन सिंह ने अपने छोटे भाई बलराम सिंह व उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह के नाम पर एक पुरस्कार की शुरूवात की थी। यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष पर्यावरण व वन्य-जीवन के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले सरकारी व गैर-सरकारी व्यक्तियों व संस्थाओं को दिया जाता है।
यहां यह बता देना जरूरी हो जाता है कि बलराम सिंह ने एक बैश्विक कार कम्पनी के उच्च पद को त्याग कर टाइगर हावेन में बिली के साथ मिलकर वन्य-जीवों के लिए स्मरणीय कार्य किए और उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह ने उनके कार्यों को बलराम सिंह के बाद भी जारी रखा। सन २००७ में मीरा बलराम सिंह का भी निधन दुबई में हुआ। जहां वह अपने बेटे के साथ रहती थी।
मीरा बलराम सिंह ने अपने पति की मृत्यु के बाद बिली की पुस्तके टाइप करने में मदद करना और टाइगर हावेन की साज-सज्जा का खयाल रखना उनके प्रिय कार्यों में था। मीरा जी का टाइगर हावेन में क्रिसमस पार्टी का आयोजन काफ़ी लोकप्रिय था उनके मित्रों और आस-पास के लोगों में।
कुँवर बिली अर्जन सिंह के पश्चात अब इस पुरस्कार की गरिमा और इसका वितरण जारी रहेगा या यह पुरस्कार भी अपने प्रणेता के साथ अपना अस्तित्व खो देगा ये आने वाला समय बतायेगा।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-भारत
पद्म श्री बिली अर्जन सिंह ने अपने छोटे भाई बलराम सिंह व उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह के नाम पर एक पुरस्कार की शुरूवात की थी। यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष पर्यावरण व वन्य-जीवन के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले सरकारी व गैर-सरकारी व्यक्तियों व संस्थाओं को दिया जाता है।
यहां यह बता देना जरूरी हो जाता है कि बलराम सिंह ने एक बैश्विक कार कम्पनी के उच्च पद को त्याग कर टाइगर हावेन में बिली के साथ मिलकर वन्य-जीवों के लिए स्मरणीय कार्य किए और उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह ने उनके कार्यों को बलराम सिंह के बाद भी जारी रखा। सन २००७ में मीरा बलराम सिंह का भी निधन दुबई में हुआ। जहां वह अपने बेटे के साथ रहती थी।
मीरा बलराम सिंह ने अपने पति की मृत्यु के बाद बिली की पुस्तके टाइप करने में मदद करना और टाइगर हावेन की साज-सज्जा का खयाल रखना उनके प्रिय कार्यों में था। मीरा जी का टाइगर हावेन में क्रिसमस पार्टी का आयोजन काफ़ी लोकप्रिय था उनके मित्रों और आस-पास के लोगों में।
कुँवर बिली अर्जन सिंह के पश्चात अब इस पुरस्कार की गरिमा और इसका वितरण जारी रहेगा या यह पुरस्कार भी अपने प्रणेता के साथ अपना अस्तित्व खो देगा ये आने वाला समय बतायेगा।
कृष्ण कुमार मिश्र
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Tuesday, January 5, 2010
द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो
हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित मेरी दुधवा डायरी में यह वाकया आप को प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की कि आत्म कथा याद दिला जायेगा, जब मैने सुना कि एक गांव में वृक्षॊं से चिड़ियां जमीन पर गिर रही। इस अदभुत घटना का विवरण पढ़िए।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
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मैनहन
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