कभी अपने कृषि वैज्ञानिकों व सरकार के तमाम दावों से प्रभावित होकर मैने एक लेख लिखा था, जो पैरोकारी कर रहा है जेट्रोफ़ा (Jatropha curcus) यानी कथित रतनजोत का। किन्तु भारत की भूमि पर यह एक इनवैसिव प्रजाति है और इसका वस्तविक घर दक्षिणी अमेरिका है। रतनजोत के नाम से प्रचारित कर हमारे किसानों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया। जबकि भारतीय रतनजोत (Arnebia nobilis) एक आयुर्वैदिक गुणों से परिपूर्ण औषधीय पौधा है। जबकि ये कथित जेट्रोफ़ा न जाने कितने बच्चो, जानवरों का काल बन चुका है और हमारी स्थानीय वनस्पतियों के लिए खतरा भी।
जिस मकसद से यह विदेशी पौधा हमारी धरती पर लाया गया था, उसका यथार्थ में कोई परिणित नही हो पायी न तो जेट्रोफ़ा के तेल से रेल चली और बस, किसान भी ठगे रह गये, उनके खेतों मे आज भी ये वनस्पति अपना वास्तविक वजूद तलाश रही है और किसान अपना आर्थिक लाभ किन्तु दोनों ठगे से प्रतीत हो रहे है।
वैसे धरती पर कूछ भी विदेशी-स्वदेशी नही होता किन्तु इतना तो अवश्य है कि कौन सा जीव या वनस्पति दूसरी भौगोलिक व पर्यावरणीय अवस्थाओं में अपने आप को ढ़ाल पायेगा!
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी