Tuesday, December 29, 2009

जान जोखिम में






3, जुलाई 2004 को सहारा समय में प्रकाशित

दुधवा के बाघ, तेन्दुए अपने अस्तित्व की लड़ाई में, हारते नज़र आ रहे है, कभी रोड एक्सीडेन्ट, कभी शिकारियों से तो कभी सरकारी इंतजामियां से! जिन्हे कभी-कभी मज़बूर हो जाना पड़ता है इस कृत्य के लिए। कुछ ऐसा ही हुआ था, सन २००४ में एक तेन्दुए को वन अधिकारियों ने "आपरेशन सूर्यास्त" चलाकर मार दिया, मीडिया में चर्चा हुई, वाहवाही का सबब बनी एक जानवर की मौत और अतीत के शिकार जैसे बहिसयाना शौक की भी पूर्ति हो गयी आज के तमाम कड़े नियमों के बावजूद। मैन-ईटर का सर्टीफ़िकेट दो और मार दो। तबसे तमाम हादसे होते चले आ रहे है, कभी कोई नवाब आ कर बाघ को मार देता है, और कभी सरकारी अमला या उसकी आड़ मे कुछ पुराने शिकारी भी ये शौक पूरा कर लेते है, । आदमखोर को मारने या पकड़वाने के सहयोग की आड़ में।
जानवर को अखबार व चर्चा में पहले खूंखार, दहशतगर्द व दरिन्दा बनाया जाता है फ़िर उसके साथ छेड़-छाड़ शुरू होती, और कुछ दिनों या महिनों के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या फ़िर किसी चिड़िया घर(कसाई-बाड़े) में आजीवन कैद। असल समस्याओं से परदा उठने का नाम ही नही लेता।
 मनुष्य की बलात्कारी दृष्टि,  जंगलों व उनमें रहने वाले  जानवरों को लूट-घसोट लेना चाहती है। इस प्राकृतिक संपदा को.............
जबकि सवाल यह है कि हम जंगल में अपना गैर-वाज़िब दखल बढ़ाते जा रहे है और जब कोई जानवर भटक कर मानव आबादी में घुसता है। जिसके पास कोई भौगोलिक या राजनैतिक सीमाओं का नक्शा नही होता,  तो हम हल्ला मचाते है....नतीज़ा। अफ़सरों पर बढ़ता दबाव, नेताओं का और जनता का, क्योंकि ये दोनों एक ही बूचड़ खाने के लोग है, नेता इन्हे रोज़ काटते है और ये कटते है लेकिन इस बात की उन्हे कोई फ़िक्र नही बस फ़िक्र हो जाती है कि ये जानवर हमारे इलाके में कैसे आया। जबकि ये बात ये लोग याद करना नही चाहते कि ये इन्ही जानवरों के घरों को तबाह कर खेत, और अपनी अट्टालिकायें बनाये हुए है।
इन जानवरों के साथ रहने का सबूर अगर नही आया, तो जल्द ही हमारा वज़ूद डगमगाना शुरू-ए हो जाएगा। फ़िर...............
०३ जुलाई २००४ को प्रकाशित मेरा यह लेख, उन्ही निर्मम दिनों का है जब इस तेन्दुए को मौत के घाट उतारा गया जो आदमखोर हो गया था। और इसकी वज़ह थे सिर्फ़ वो लालची इन्सान जो धन व ज़मीन के लालच में वैध-अवैध जमीनों के खातिर जंगल क्या नदी के मध्य में भी कुटी छवा ले। .........कुटी बह जायेगी मुवावज़ा तो फ़िर भी मिलेगा !!!!!!
आज खेरी जनपद के बाघ अब दुधवा टाइगर रिजर्व में सिमट कर रह गये है। उनकी खाद्य श्रंखला प्रभावित हो चुकी है और आवास भी, बाढ़ जैसी विभीषिकाओं ने बचा खुचे हालातों को बेलीगा़रद कर दिया, बाढ़ को अब प्राकृतिक आपदा नही कहा सकता क्योंकि अब यह मानव जनित है।...............

कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी

2 comments:

  1. शुक्रिया इंतजामियां-ए-अखबारात जिन्होंने मेरे शब्द लोगों तक पहुंचायें। और आभार गूगल का जो अब मेरे विचार ग्लोबल हो रहे है

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