ये कुछ संस्मरण है मेरे अपने लोगों के जिनकी नज़र से देखा है॥ ये वो दौर था जब कोई राजा नही था और न नवाब, जो अंग्रेजों की नौकरी कराते थे। इन नौकरों को गोरों ने राजा, महाराजा, नवाब आदि के ख़िताब का एक रुक्का (कागज़) दे रखा था।
उस सेकंडरी शासक कैसे-कैसे जुल्म करते थे जनता से और कैसे रहमदलाली और चापलूसी करते थे गोरी चमड़ी का इसका बयांन तो नही करूंगा। किन्तु उनके उन रुतबों का और राज भय का जिक्र जरूर करूंगा, जिनके कारण जनता को कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती थी।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी
शुक्रिया इंतजामियां-ए-अखबारात, जिन्होंने मेरे शब्द लोगो तक पहुंचाये। अब आभारी हूं गूगल का जो मेरे विचारों ग्लोबल बना रहा है।
ReplyDeleteबहुत से सुन्दर आलेख लिखे हैं आपने जो यहाँ दिख रहे हैं । आपका यहाँ होना ब्लॉग-जगत को समृद्ध करेगा । आभार ।
ReplyDeleteऔर हाँ, टेम्पलेट बहुत खूबसूरत है । टिप्पणियों और साइडबार के अक्षर कुछ बड़े हो सकें तो बेहतर होगा ।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख!!
ReplyDeleteमुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
इस नए ब्लॉग के साथ नए वर्ष में हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. अच्छा लिखते हैं आप .. आपके और आपके परिवार वालों के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
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