Sunday, January 24, 2010

बसन्त पंचमी के दिन को हम राष्ट्रीय अवधी दिवस की तरह क्यों न मनायें।

इसी दिन अवधी सम्राट पं० बशीधर शुक्ल का जन्म हुआ था। आजादी के इस नायक ने ही सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज को लांग मार्च गीत दिया...कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा। इन्ही के उस गीत की आवाज ने करोड़ों हिन्दुस्तानियों को सदियों की नीद से जगाने का काम किया....उठो सोने वालों सबेरा हुआ है............एक और गीत जिसे साबरमती आश्रम की भोर प्रार्थना बनाया गया...उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है।

अवधी भाषा में उनकी कवितायें समाज के सभी वर्गों का और प्रकृति के सभी पहुलुओं को छूती ही नही है वरन उनकी पीड़ा और खूबसूरती का सजीव चित्रण किया है। यहां मैं अपना एक लेख जो अमृत वर्षा दैनिक नई दिल्ली से 23 जनवरी सन 2010 ईस्वी को प्रकाशित हुआ, जिसकी कतरन यहां चिपका रहा हूं। ताकि तराई के जनपद के इस भाषा मर्मग्य व स्वतंत्रता सेनानी से आप सब परिचित हो सके।








Friday, January 15, 2010

दो फ़न वाला दुर्लभ रसेल वाइपर

१३ अगस्त सन २००६ को दैनिक हिन्दुस्तान लखनऊ से प्रकाशित मेरा लेख, जो एक बेहतरीन और अदभुत जानकारी देता है, भारत के शेषनागों के बारे में, संभवता यह पहला रिकार्ड है भारत  के जीव-जगत में, दो सिर वाला वाइपर सर्प। खीरी के एक गांव में ये जीव दिखाई पड़ा और ग्रामीणों ने तुरन्त इसे महादेव के मन्दिर में रखकर पूजा-अर्चना प्रारम्भ कर दी, आखिर महादेव के प्रिय सर्पों में यह तो शे्षनाग का अवतार था!
खैर अब आप सोचियें कि एक शरीर में दो मस्तिष्क और दो मुँह वाला जीव,  भोजन मिलने पर क्या करेगें।
दोनों मुंह आपस में लड़ेगें?
या समन्वय स्थापित करेगें?
विस्तृत जानकारी के लिए लेख पढ़िए।





Sunday, January 10, 2010

...........जब सुहेली भी ठहरी नज़र आई

हिन्दुस्तान में ६ जनवरी २०१० को प्रकाशित श्रद्धाजंली।

पद्म भूषण कुँवर बिली अर्जन सिंह(१५ अगस्त १९१७-०१ जनवरी २०१०)






कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत

एक आनरेरी टाइगर का जाना

कुँवर बिली अर्जन सिंह जिन्होंने भारत में टाइगर संरक्षण की शुरुवात की और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना करवाई। और दुनिया में पहली बार बाघ और तेन्दुओं को पुनर्वासित करने का सफ़ल प्रयोग किया। ऐसी महान विभूति की हमारे मध्य से अनुपस्थित, महान दुख और रिक्तता का एहसास करायेंगा, जब-जब इन खूबसूरत जीवों पर अत्याचार होगा।
इस वैश्विक व्यक्तित्व को मेरी भाव-भीनी श्रद्धाजंली।
अमर उजाला में प्रकाशित ये श्रद्धाजंली की एक कतरन पोस्ट कर रहा हूं, इस आशा के साथ कि आप सब भी वाकिफ़ होगे धरती के उस महानायक से जो अब हमें अलविदा कह चुका है।




कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत


Friday, January 8, 2010

मीरा-बलराम सिंह पुरस्कार


मेरा यह लेख १५ अक्टूबर सन २००६ में दैनिक हिन्दुस्तान लखनऊ में प्रकाशित हुआ।


पद्म श्री बिली अर्जन सिंह ने अपने छोटे भाई बलराम सिंह व उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह के नाम पर एक पुरस्कार की शुरूवात की थी। यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष  पर्यावरण व वन्य-जीवन के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले सरकारी व गैर-सरकारी व्यक्तियों व संस्थाओं को दिया जाता है।
यहां यह बता देना जरूरी हो जाता है कि बलराम सिंह ने एक बैश्विक कार कम्पनी के उच्च पद को त्याग कर टाइगर हावेन में बिली के साथ मिलकर वन्य-जीवों के लिए स्मरणीय कार्य किए और उनकी पत्नी मीरा बलराम सिंह ने उनके कार्यों को बलराम सिंह के बाद भी जारी रखा। सन २००७ में मीरा बलराम सिंह का भी निधन दुबई में हुआ। जहां वह अपने बेटे के साथ रहती थी।
मीरा बलराम सिंह ने अपने पति की मृत्यु के बाद बिली की पुस्तके टाइप करने में मदद करना और टाइगर हावेन की साज-सज्जा का खयाल रखना उनके प्रिय कार्यों में था। मीरा जी का टाइगर हावेन में क्रिसमस पार्टी का आयोजन काफ़ी लोकप्रिय था उनके मित्रों और आस-पास के लोगों में।
कुँवर बिली अर्जन सिंह के पश्चात अब इस पुरस्कार की गरिमा और इसका वितरण जारी रहेगा या यह पुरस्कार भी अपने प्रणेता के साथ अपना अस्तित्व खो देगा ये आने वाला समय बतायेगा।

कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-भारत

Tuesday, January 5, 2010

द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो

हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित मेरी दुधवा डायरी में यह वाकया आप को प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की कि आत्म कथा याद दिला जायेगा,  जब मैने सुना कि एक गांव में वृक्षॊं से चिड़ियां जमीन पर गिर रही। इस अदभुत घटना का विवरण पढ़िए।


कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत